माँ कूष्मांडा का महत्व
माँ कूष्मांडा को “अष्टभुजा देवी” कहते हैं, जिनके आठ हाथों में शंख, चक्र, गदा, धनुष, कमल, अमृतकलश, कमंडल और जपमाला सुशोभित होते हैं.
मान्यता है कि अपनी मंद मुस्कान से माँ ने ब्रह्मांड की रचना की और सूर्य के केंद्र में निवास कर सृष्टि को ऊर्जा प्रदान करती हैं.
इनका पूजन दीर्घायु, स्वास्थ्य, अदम्य साहस व आत्मबल, धन-संपन्नता और सकारात्मकता लाने के लिए किया जाता है.
पूजा विधि
प्रातः पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें, माँ की प्रतिमा या चित्र को पीले या लाल कपड़े पर रखें.
माँ को लाल वस्त्र, हल्दी-कुमकुम, पुष्प व माला अर्पित करें.
शुद्ध घी का दीपक जलाएं, धूप-अगरबत्ती लगाएं, फल-मिठाई का भोग चढ़ाएं.
कलश स्थापना व माँ का ध्यान करके माँ के प्रमुख मंत्र का जप करें.
आरती व पुष्प समर्पित करें, श्रद्धा-विश्वास से प्रार्थना करें.
भोग-व्रत नियम
श्रद्धालु पूरे दिन सात्विक भोजन करें, अनाज और तामसिक खाद्य पदार्थ से बचें.
उपवास रखने वाले व्रती दिनभर माँ का ध्यान, मंत्र-जप, आरती करें व फल या साबूदाना, कुट्टू, सिंघाड़े का आहार ले सकते हैं.
प्रमुख मंत्र
"ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः"
स्तुति:
"दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥"कवच:
"हंसरै में शिर पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्।
हसलकरीं नेत्रेच, हसरौश्च ललाटकम्॥"
माँ कूष्मांडा की आरती (हिन्दी)
"कूष्माण्डा जय जग सुखदानी।
मुझ पर दया करो महारानी॥
पिंगला ज्वालामुखी निराली।
शाकंबरी माँ भोली भाली॥
लाखों नाम निराले तेरे।
भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा।
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
सबकी सुनती हो जगदम्बे।
सुख पहुँचती हो माँ अम्बे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा।
पूरण कर दो मेरी आशा॥"
ऊर्जा, साहस और नई शुरुआत का बल
माँ कूष्मांडा की आराधना से मन-मस्तिष्क सकारात्मक होता है और साहस, उत्साह व आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है.
रोग-शोक और नकारात्मकता दूर होकर जीवन में शुभ आरंभ की शक्ति और चमत्कारिक ऊर्जा मिलती है.
नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्मांडा की पूजा पूरी श्रद्धा व शुभता से करें और जीवन में नए सृजन, ऊर्जा व आत्मबल का संदेश पाएं.
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